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महफ़िल में तलातुम है हँसी क़हक़हे मा’मूर / रवि सिन्हा

महफ़िल में तलातुम<ref>तरंग (wave)</ref> है हँसी क़हक़हे मा’मूर<ref>परिपूर्ण (plenty)</ref>
इस दिल की उदासी का सबब दिल में ही मस्तूर<ref>छिपा हुआ (hidden)</ref>

चढ़ना न उतरना न कहीं तैर के जाना
ये गाँव पहाड़ों से समन्दर से बहुत दूर

अब हमसे तो इस घर की सफ़ाई नहीं होती
ख़्वाबों की जगह अब ये हक़ीक़त से है भरपूर

बौनी उगी तहज़ीब तो मिट्टी में कसर है
तुम दोष धरो बीज पे बारिश पे ब-दस्तूर

शायर से कभी चर्ख़<ref>आसमान (sky)</ref> के असरार<ref>रहस्य (secrets)</ref> न पूछो
सूरज को कहेगा वो महज़ चाँद का मज़दूर

इमरोज़<ref>आज का दिन (today)</ref> को आराम की अब शाम है नज़दीक
इस दहर<ref>युग (era)</ref> की मंज़िल है मगर दूर बहुत दूर

इस मुल्क की तक़दीर से होनी थी मुलाक़ात
तारीख़ के अरमान मगर ख़ल्क़<ref>लोग, सृष्टि (people, creation)</ref> से मजबूर

शब्दार्थ
<references/>