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महबूब-ए-मुल्क की हवा / पवन कुमार मिश्र

महबूब-ए-मुल्क की हवा बदल रही है,
ताजीरात-ए-हिंद की दफ़ा बदल रही है ।

अस्मत लुटी अवाम की कहकहो के साथ,
और अफज़लो की सज़ा बदल रही है ।

बारूदी बू आ रही है नर्म हवाओ में,
कोयल की भी मीठी ज़बां बदल रही है ।

सुबह की हवाख़ोरी भी हुई मुश्किल,
जलते हुए टायर से सबा बदल रही है ।

सियासत ने हर पाक को नापाक कर दिया,
पंडित की पूजा मुल्ला की अज़ां बदल रही है ।

कहने को वह दिल हमीं से लगाए है,
मगर मुहब्बत की वज़ा बदल रही है ।

दुआ करो चमन की हिफ़ाज़त के वास्ते,
बाग़बानो की अब रज़ा बदल रही है ।

निग़हबानी करना बच्चों की, ऐ ख़ुदा !
दहशत में मेरे शहर की फ़ज़ा बदल रही है ।