महल में बैठकर वह आमजन की बात करता है,
कोई आवारा मीरा के भजन की बात करता है।
तेरे मुँह से सितम के ख़ात्मे की बात यूँ लगती,
स्वयँ रावण ही ज्यों लंका दहन की बात करता है।
नहीं महफ़ूज़ हैं अब बेटियाँ अपने घरों में भी,
जनकपुर में कोई सीताहरण की बात करता है।
मुखौटे में छिपे हर रहनुमा चेहरे का ये सच है,
वो छूकर बर्फ़ तेज़ाबी जलन की बात करता है।
हमारे दौर में अच्छे-बुरे का फ़र्क़ है मुश्किल,
यहाँ हर बदचलन अब आचरण की बात करता है।
जो बाबा बैठता है सोने-चाँदी के सिंहासन पर,
वो इस संसार को माया-हिरन की बात करता है।