Last modified on 1 मई 2022, at 19:15

महशर / अदनान कफ़ील दरवेश

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:15, 1 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अदनान कफ़ील दरवेश |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बहुत पुराना है उनका दुख
पुरानी चादरों और पुराने कम्बलों से भी पुराना
पुराने बर्तनों और पुराने पीपल के दरख़्तों से भी पुराना
जर्जर कुओं, सूखे तालाबों, बंजर चरागाहों और खण्डहर मकानों से भी पुराना
उजाड़ परित्यक्त रेल सम्पत्तियों से भी पुराना
पुराने ज़ख़्मों और पुरानी अवैध कॉलोनियों से भी पुराना
रेत और बर्फ़ से भी प्राचीन है उनका दुख
धरती और समुद्र से भी पुराना…
जितना पुराना है नमक
उतना पुराना है उनका दुख
या उससे भी पुराना
कि जितनी पुरानी है हिंसा…

आप सोचते होंगे आख़िर वे कौन लोग हैं
जो धुएँ की मानिन्द उठते हैं और फैल जाते हैं
धूल की तरह उड़ते हैं और बैठ जाते हैं
राख की तरह झड़ते हैं और खो जाते हैं

आप जानना चाहते होंगे उनके नाम
उनके बाप-दादाओं के नाम
उनकी ज़बान और उनके मज़हब का नाम !
उनके नाम अलग-अलग भाषाओं में हैं
और मज़हब कोई भी हो
लेकिन उनके डर अद्भुत रूप से समान हैं
वे दुनिया के सबसे पुराने मकीन हैं
और सबसे पुराने मुहाजिर भी
उनके चेहरे भी मिलते-जुलते से हैं
वे दुनिया के सबसे सताए हुए लोग हैं
वे अपने मुहल्लों और बस्तियों में भी विस्थापितों की सी ज़िन्दगियाँ बसर करने पे मजबूर किए जाते हैं
उनके घरों को दंगों में सबसे पहले आग लगाया जाता है
और सरकारी बुलडोज़रों से सबसे पहले नेस्तनाबूद किया जाता है
वे सबसे ज़्यादा खटने वाले मेहनतकश लोग
सबसे कमज़ोर समझे जाने वाले लोग
एक दिन उट्ठेंगे
और डटकर खड़े हो जाएँगे
तमाम ज़ालिम तानाशाही हुकूमतों के ख़िलाफ़
और अपने सारे पुराने दुखों का हिसाब माँगेंगे
एक दिन महशर यहीं से उट्ठेगा
यहीं लगेगी सबसे बड़ी अदालत
और होगा न्याय…

आप मज़लूम बस्तियाँ उजाड़ने वाले हुक्मरान लोग
उस रोज़ किस ख़ुदा को याद करेंगे ।