Last modified on 25 मई 2011, at 05:16

महानगर की बस में / हरीश करमचंदाणी

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:16, 25 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>भीड़ भरी बस में अनजाने में कुचल गया पांव माफ़ करना भाई, कहा सहय…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भीड़ भरी बस में
अनजाने में कुचल गया पांव
माफ़ करना भाई, कहा सहयात्री ने
 
अच्छा लगा
दिया घाव
पर बहुतदिनों बाद मिला
एक आत्मीय संबोधन