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महानगर में एक मृत्यु / विनय सौरभ

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जब सारे बच्चे स्कूल जा रहे थे
जब सारे कामगार अपने अड्डे पर जा रहे थे अधिकारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच निकल रहे थे दफ्तरों को
जब पड़ोसी देश के रक्षा मंत्री को दिया जा रहा था गार्ड ऑफ ऑनर
जब संसद में प्रतिनिधियों के बीच प्रतिरक्षा मामले में जारी थी बहस
गांव से आए युवक के पेट में घोंप दिया छूरा किसी ने ठीक उसी वक्त !

हत्यारा ले पाया सिर्फ उसकी घड़ी
हत्यारे को नहीं मिली उसके झोले में मतलब की कोई भी चीज
हत्यारे ने इतने इतने के बाद भी मरे हुए युवक को दी गाली और तेज घृणा के साथ फेंक दिया झोला नाली में

हत्यारा तानाशाह की भांति लोगों के सामने से चलता हुआ बगल की गली में गुम हो गया

पुलिस उस गली में आई दो-चार दिन
नहीं मिला हत्यारे का कोई भी सुराग

हत्यारा बैठता रहा चौराहे की दुकानों पर रोज की तरह,जिस तरह रोज छपते हैं अखबार

पुलिस को झोले में मिले
एक पुराना तोलिया
एक नया स्वेटर
एक तस्वीर

ऐसे झोले संथाल परगना के गांवों के मेले में मिलते हैं हम में से हर कोई ऐसा झोला एक बार जरूर खरीदा है जीवन में

गांव से युवक के विदा होने का संगीत छुपा होगा उस झोले में
उसी झोले में तय होगा दिल्ली से ढेर सारी चीजों का गांव आना
कितने -कितने सपनों का गवाह होगा वह झोला !!

बूढ़े मां बाप और पत्नी के संग किसी मेले में ही खिंचवाई होगी वह तस्वीर

कितने जतन से बीना गया होगा यह स्वेटर !
दिल्ली की भयंकर ठंड में रक्षा करेगा किसी ने सोचा होगा अपने बेटे के लिए
किसी नवोढ़ा की उंगलियों का स्पर्श छिपा होगा इस स्वेटर में

एक तस्वीर
एक तौलिया
एक स्वेटर
किसी के पत्ते की शिनाख्त नहीं हो सकते दिल्ली में

हाय किन दुर्भाग्यपूर्ण क्षणों में आया होगा वह महानगर घोषित हुई जिसकी लावारिस

कोई पहचाने तो पह​​चान ले जालिम दिल्ली में
किस गांव से आया था युवक
किस जनपद का था
किन सपनों की खातिर आया था यहां

शिनाख्त के लिए पड़ा है अभी भी
वह पुराना तौलिया
पहाड़ी हाथ से बना हुआ वह झोला
स्वेटर और वह तस्वीर भी
जिसमें वह बूढ़े मां बाप और नई पत्नी के संग ताजमहल के सामने खड़ा मुस्कुरा रहा है

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