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महिषासुर का सन्धि-पत्र / पराग पावन

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यह लड़ाई तुम्हारी नहीं है, दुर्गा !
मेरी पसलियों में धँसा हुआ
तुम्हारे हाथ पर चढ़ा हुआ
यह त्रिशूल किसका है
मेरे रक्त में तैरती तुम्हारी तलवार का
असली पता क्या है
असली वजह क्या है
जो मेरा अन्त ही तुम्हारी मंज़िल है

मैंने नहीं छीनी तुम्हारी ज़मीन
मैंने नहीं गाया तुम्हारे ख़िलाफ़ कोई गीत
मैंने नहीं रची तुम्हारे विरुद्ध कोई साज़िश

तुम्हारा रूप मेरे लिए जीवन का पर्याय था
तुमसे परिचय मेरे नए जन्म की आहट थी

मैंने चाहा था कि
जब साँझ के सागर में डूबते सूरज को
सर झुकाकर विदा करे कास का फूल
हम उसके पास बैठे रहें हाथ पर हाथ धरे हुए
मैंने चाहा था कि
बीच जंगल में भीगती हुई हम दोनों की हँसी
एक झटके में ध्वस्त कर दे
गीले पेड़ों की तन्हाई को

तुम्हारे साथ जीना चाहा था, दुर्गा !
एक औरत के मान के सम्मुख नतमस्तक होकर
एक औरत को कुछ क्षणों के लिए नहीं चाहा
मैंने चाहा था पूरा-का-पूरा जीवन
पूरे जीवन का पूरा-का-पूरा साथ

मेरा जन्म एक उपहास था
मुझे अपमान ने पाला था और व्यंग्य ने दुलारा था
मेरी मोटी और श्यामवर्णी माँ को किसने भैंस कहा
क्या तुम जानती हो

क्या तुम्हें पता है मेरी हत्या के बाद
तुम्हारी बची उम्र का क्या होगा
तुम समझती हो कि
सरेआम तुम्हें नहीं बैठाया जाएगा
एक पुरुष की नंगी जाँघ पर
तुम समझती हो कि तुम्हारी सम्भावना सहित
तुम्हें नहीं जला दिया जाएगा
फागुन-चैत के महीने में
तुम्हारी पवित्रता का परीक्षण होगा
तुम्हें जलावतन किया जाएगा
और इज़्ज़त के नाम पर
दफ़ना दिया जाएगा धरती में

भारतवर्ष में बहुत कम हैं विश्वविद्यालय
विश्वविद्यालयों में बहुत कम हैं स्त्रियाँ
उनमें भी कम ही सुन सकी होंगी
ज्याँ फ्राँकोइस ल्योतार का नाम
फिर भी यह समझना बहुत कठिन नहीं है, दुर्गा !
कि सारे सत्य तथाकथित होते हैं
सारी कहानियाँ एक हथियार हैं
जिससे विरोधी विचारों की गर्दन उतारी जाती है

मेरी हत्या के ऊपर तुम्हारी हत्या है
और तुम्हारी हत्या के ऊपर
बैठा है कोई महर्षि
जिसकी जटाओं में ज्ञान की एक गंगा है
जो तिनके को डुबा सकती
पत्थर को तैरा सकती है

दुर्गा !
यह युद्ध पल भर के लिए रोक दो
ताक़त के उस तन्त्र की गहरी पड़ताल करो
जिसने हत्या को जश्न में बदल दिया
इस युद्ध को पल भर के लिए रोक दो, दुर्गा !
और अपनी पुरखिनों को याद करते हुए
सीने पर हाथ रखकर
अपनी अजन्मी बेटी की क़सम खाकर बोलो
कि पिछले महीने राजगीर की पहाड़ी पर
बलत्कृत हुई थी जो लड़की
उससे तुम्हारा कोई नाता नहीं था !