भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँगना तुम्हीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
[[Category: सेदोका]]
 
[[Category: सेदोका]]
 
<poem>
 
<poem>
1
+
57
 
नत है शीश
 
नत है शीश
 
करता हूँ वंदन
 
करता हूँ वंदन
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
करूँ हित चिंतन
 
करूँ हित चिंतन
 
साँसों में बसाकर।
 
साँसों में बसाकर।
2
+
58
 
रंग या रूप
 
रंग या रूप
 
यौवन की ये धूप
 
यौवन की ये धूप
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
न आयु -लिंग भेद
 
न आयु -लिंग भेद
 
गङ्गा नहाके आए।
 
गङ्गा नहाके आए।
3
+
59
 
कुछ न करो
 
कुछ न करो
 
कभी पल दो पल
 
कभी पल दो पल
पंक्ति 27: पंक्ति 27:
 
मिलन का प्रभात
 
मिलन का प्रभात
 
सुख के दिन-रात।
 
सुख के दिन-रात।
4
+
60
 
लौटना कभी
 
लौटना कभी
 
किस गाँव  की गली
 
किस गाँव  की गली
पंक्ति 34: पंक्ति 34:
 
मेरा न कोई गाँव
 
मेरा न कोई गाँव
 
घर-द्वार भी नहीं।
 
घर-द्वार भी नहीं।
5
+
61
 
उजाड़ वन
 
उजाड़ वन
 
हमने बसाए थे,
 
हमने बसाए थे,

21:49, 11 जून 2019 का अवतरण

57
नत है शीश
करता हूँ वंदन
तेरा ही सुख माँगूँ ,
प्रतिपल मैं
करूँ हित चिंतन
साँसों में बसाकर।
58
रंग या रूप
यौवन की ये धूप
माना सब नश्वर,
मन के भाव-
न आयु -लिंग भेद
गङ्गा नहाके आए।
59
कुछ न करो
कभी पल दो पल
करो जो सुमिरन,
माँगना तुम्हीं
मिलन का प्रभात
सुख के दिन-रात।
60
लौटना कभी
किस गाँव की गली
मुझे पता ही नहीं
मैं बनजारा
मेरा न कोई गाँव
घर-द्वार भी नहीं।
61
उजाड़ वन
हमने बसाए थे,
फूल भी खिलाए थे
भूलके कभी
तोड़ी न कोई कली
क्या यही ग़ुनाह था!