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तोड़ी न कोई कली
क्या यही ग़ुनाह था!
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नीलम नभ
धुँआँ पीकर मरा
साँस-साँस अटकी
हम न जागे
हरित वसुंधरा
द्रौपदी बना लूटी।
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