भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँझी से / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:03, 25 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= कविता / गुलाब खंडेलवाल }} …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


(रवीन्द्रनाथ के प्रति)

किसे पुकार रहा तू माँझी! धूमिल संध्या-वेला में
सागर का है तीर, खडा हूँ संगीहीन अकेला, मैं
डूब चुका रवि अरुण, थकी लहरें, उदास है सांध्य-पवन
तारक-मणियों से ज्योतित नीलम-परियों के राजभवन
मधुवन पीछे लहराता है शांत मरुस्थल के उर में
आगे तरल जलधि-प्रांगण रोता विषाद-पूरित सुर में
. . .
शिथिल बाँह, पग काँप रहे, कंठ-स्वर रुँधने को आया
झुकी कमर, जड़-काष्ट उँगलियाँ, जीर्ण त्वचा, जर्जर काया
समझा, जीवन की संध्या में आज पुकार रहा किसको
कौन तरुण वह, सौंप चला जायेगा यह नौका जिसको
आ जा माँझी! छाया-सा चुपचाप उतर निर्जन तट पर
इन लहरों से मैं खेलूँगा अब तेरी नौका लेकर

1941