भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ की चिट्ठी / सुभाष शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेटा ! तुम्हारा खत मिला
और मिली महँगाई की दर
सुनते ही भूल गई अपना कमर-दर्द
पर आते हुए टिकट लेकर आना
कुछ तो सबूत रहेगा होने का
भले मुझे सौ के बजाय नब्बे देना
मैं नहीं लूँगी दो बट्टी साबुन
सब चलता है !
आखिर छिप जाएगी समाज की मैल में
मेरी रंगीन साड़ी की गंदगी !
सुनो भैया !
मेरी मुन्नी की गुड़िया को जरूर लाना पोशाक
भले रहे मेरी मुन्नी उघार
डसका सपना न मर जाए
इसका रखना ख्याल
गठिया लेना इसे आँचर की कोर में
ओह ! ओह ! मर्दों के आँचर नहीं होते
और आबरू की चीजें
नहीं रख सकते पैंट की जेबों में
पुत्तर ! दुक्खू हरवाह की बाकी है मजूरी
उससे चुराती हूँ मुँह रोज-रोज
अब पैर भारी है उसकी घरवाली का
हमने भूत को धता दिया
वर्तमान को चकमा दिया
मैं भविष्य से मुँह नहीं चुरा सकती, मेरे लाल !
बेटवा ! अपनी सेहत का ख्याल रखना
पानी में मिला दूध इतना महँगा मत खरीदना
बस मैदान जाने के पहले
पी लेना एक लोटा शुद्ध पानी
सोने से पहले धो लेना हाथ-पैर
सो जाना पीकर ठंडा पानी
लेकिन न किसी का पानी लेना
न अपना पानी जाने देना
मत छेड़ना किसी को
पर छेड़ने पर बन जाना बर्रे
पूजा करना भगवान की फोटू लेकर
पर मढ़े फोटू के लिए
चलते-फिरते फोटू को मत भूलना !
बच्चा ! महँगाई तो बहुत है
कुछ कहते नहीं बनता
इस बार आना तो रजाई लेते आना
चिट्ठी का जवाब जल्द देना
लिफाफे की जगह पोस्टकार्ड भेज देना
बाकी पैसे में खरीद लेना नमक !
मन करता है चिरई होती
पहुँज जाती फुर्र से उड़कर तुम्हारे पास
कोई भाड़ा न लगता
अच्छा, बहुत हो चुका
लिखना थोर समझना ढेर
दुलहिन का बुखार
कमा है तुलसी-मिर्च के काढ़े से
मत करना उसकी चिंता
मुन्नी खेल रही है चोर-साह
अब नहीं सुनती मुझसे किस्से
कहती है—राजा-रानी हटाओ
मुझे लाल परी दिखाओ
तुम कितने सीधे थे
नहीं करते थे ऐसे कठिन सवाल
खैर ----
बचई ! इस बार आना
तो मोमफली जरूर लाना
वैसे महँगाई तो भयंकर है
जनता की जूती/जनता के सिर है
जैसा ठीक समझना, वैसा करना
लौटती डाक से जवाब भेज देना ।