भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ शारदे / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:58, 28 जून 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


खोल किवाड़ हँसी के घरों में
 मात बिखेर हरियाली बंजरों में
 बसंत को तेरा उपकार लिखूँगी
माँ शारदे तेरा प्यार लिखूँगी !

पहाड़ी पगडण्डी पर घोर अँधेरे
गाँव के जीवन में कर दे सवेरे
 गीतों में इनका शृंगार लिखूँगी
 माँ शारदे तेरा प्यार लिखूँगी !

सुन्दर शब्दों के फूल मैं चुनकर
मनहर भावों के धागे में बुनकर
नदी-वृक्ष-लता-शैल- शृंगार लिखूँगी
माँ शारदे तेरा प्यार लिखूँगी !

जीवन से ताप-संताप मिटा माँ
आशा-अनुराग-आलाप सुना माँ
निश्छल मन के उद्गार लिखूँगी
माँ शारदे तेरा प्यार लिखूँगी !