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माँ सरस्वती / गिरीश पंकज

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जय, जय, जय हे माँ सरस्वती,
तुमको आज निहार रहा हूँ ।
अपने हाथ पसार रहा हूँ ।।

ज्ञान-शून्य हो भटक रहा हूँ,
मुझको नव-पथ तू दर्शा दे ।
सूखे मानस में तू मेरे,
ज्ञान-सुधा आकर बरसा दे ।
मुझको शक्ति दे दे माता,
पल-पल में मैं हार रहा हूँ ।।

मातृभूमि की सेवा ही अब,
जीवन का आधार बने माँ ।
कर्म हमारी पूजा होगी,
स्वार्थ नहीं दीवार बने माँ ।
दे आशीष मुझे ओ शारद,
कबसे तुम्हें पुकार रहा हूँ ।।

कर कमलों में वीणा शोभित,
सत्कर्मों के गीत सुनाते ।
श्वेत-वसन पावन माँ तेरे,
विमल आचरण को दर्शाते ।
ज्ञान किरण दे, घोर तिमिर में,
घिरता मैं हर बार रहा हूँ ।

जय, जय, जय हे माँ सरस्वती,
तुमको आज निहार रहा हूँ ।