Last modified on 5 सितम्बर 2011, at 14:01

माँ / रमेश तैलंग

घर में अकेली माँ ही बस
सबसे बड़ी पाठशाला है।
जिसने जगत को पहले-पल
ज्ञान का दिया उजाला है।

माँ से हमने जीना सीखा,
माँ में हमको ईश्वर दीखा,
हम तो हैं माला के मनके,
माँ मनकों की माला है।

माँ आँखों का मीठा सपना,
माँ साँसों में बहता झरना,
माँ है एक बरगद की छाया
जिसने हमको पाला है।

माँ कितनी तकलीफ़ें झेल,
बाँटे सुख, सबके दुख ले ले।
दया-धर्म सब रूप हैं माँ के,
और हर रूप निराला है।