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माँ / शमशाद इलाही अंसारी

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आज
एक बार फ़िर मां को
उसके बच्चे ने
फ़िर से सताया,
उसका दिल तोड़ा
मां का रोम रोम, दर्द से
देर तक तड़पता रहा
इस दुख: और संताप के क्षणों में
हर बार की तरह
उसे, सुनाई पड़ी
ज़ोर ज़ोर से किसी बूढ़े के
हँसने की आवाज़
..अट्टाहस
जिसकी अनुगूँज
धकेल देती उसे
उसके अतीत के
किसी छाया चित्र में
जिसमें वह खुद को
अपने बच्चे की उम्र का देखती
और एक-एक कर
वह सभी दृश्य देखती
जिसमें उसकी माँ
असहाय रोती हुई
रिसती हुई
एक ओर खड़ी है.


रचनाकाल: दिसंबर २७,२०१०