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माची बसन्ता सासू जी हो / मालवी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

माची बसन्ता सासू जी हो
म्हारी माड़ी जाई ने पीयर लई जावां
बारा-बारा भैस्यां रो दूध म्हारा मां
सुगणा बिना कोण बिलोवे हो
रसोड़ा पोवन्ता जेठाणी हो
म्हारी माड़ी जाई ने पीयर लई जावां
घड़ी-घड़ी पोवणो, ने घड़ी-घड़ी पीसणों
म्हारी सुगणा बिना कौन पांवे हो
ढेलड़ा खेलन्ता बाई जी हो
म्हारी माड़ी जाई ने पीयर लई जावां
बेड़े-बेड़े पाणी कौण भरे
म्हारी सुगणा बिना कौण भरे
बासीदो सोरन्ता देराणी हो
म्हारी माड़ी जाई ने पीयर लई जावां
बारे-बारे भैस्यां रो गोबर
म्हारी सुगणा बिना कुण सोरे
ऊँची अटारी पे पियूजी हो सुता
कणे दन मांडवो, ने कणे दन घर विवाह
कणा दन जानड़ी बुलावा हो
बीज नो मांडवी, ने तीज नो घर विवाह
चौत ना दन जानड़ी बुलावा हो
घड़ी दोय घोड़ीला थोबजे रे वीरा
म्हारी सासू जी रा पांव पड़ी आवां
म्हारी जेठाणी रा पांव पड़ी आवां
म्हारी नणद रा पांव पड़ी आवां
म्हारी देराणी से मळी आवां
घड़ी दोय घोड़ीला थोबजे रे वीरा
भरे खोले जाजो बऊ वड़
ने खाली खोले आजो
लाल गंवाई घरे आजो
ने थारा बेन्या मां सासू न ससरा
किनो छेड़ो काड़ियो वो
पालना माजना बालूड़ा रमी रया
माड़ी जाई अनमनी