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माज़ुरी का सफ़र / टी० एस० एलियट / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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ठिठुरती सर्दी मिली थी हमें,
साल का सबसे मनहूस वक़्त
सफ़र के लिहाज़ से, और इतना लम्बा सफ़र :
रास्ते पेचीदा और मौसम बेरहम,
बिल्कुल मुर्दा जाड़ा ।

ऊँट घाव से छलनी, पाँव में छाले, अड़ियल,
पिघलती बर्फ़ में लेटे हुए ।
कभी-कभी होता था हमें अफ़सोस
घाटी में उन महलों को छोड़ आने का, वे बरामदे,
शर्बत लाती रेशमी हसीनाएँ ।
और यहाँ भुनभुनाते, ग़ाली देते ऊँटवाले
जो ग़ायब हो जाते थे, शराब और औरत की तलाश में,
रात को बुझ जाती थी आग़, गुँजाइश न थी सिर छिपाने की,
शहर दुश्मन और क़स्बे बेरुख़े
और गर्द भरे गाँव ऊँची क़ीमत वसूलने की फ़िराक़ में :
एक मुश्किल वक़्त मिला था हमें.
आख़िरकार हमने तय किया सफ़र रात में जारी रखने को,
बीच-बीच में ऊँघते हुए,
और हमारे कानों में गूँजती आवाज़ें, कहती हुई
कि यह एक ग़लती थी ।

फिर पौ फटते पहुँचे हम एक घाटी के किनारे,
भीगी-भीगी, बर्फ़ की सरहद के तले, हरियाली की महक़,
एक बहता हुआ सोता और अन्धेरे पर चोट करती एक पनचक्की,
और दूर नीचे आसमान से सटे तीन पेड़ ।
और एक दौड़ता बूढ़ा घोड़ा घास के मैदान में ।
फिर पहुँचे हम एक सराय में, चौखट में अँगूर की बेलें,
चन्द सिक्कों के लिए पाँसा फेंकते छह हाथ,
और उनकी लातों से लुढ़कती शराब की ख़ाली मशकें ।
लेकिन कोई ख़बर नहीं, सो जारी रहा हमारा चलना
और पहुँचे वहाँ जब शाम ढल चुकी थी
जहाँ हमें पहुँचना था, (कह सकते हो) ढाढ़स हो गई ।

एक अरसा गुज़र चुका है तब से, याद है मुझे,
और फिर से ऐसा ही करूँगा, ग़ौर करो,
ये ग़ौर करो,
ये : क्या पूरा रास्ता तय किया हमने
जनम या मौत की ख़ातिर ? जनम हुआ था, बेशक़,
सबूत है हमारे पास और इसमें कोई शक़ नहीं,
जनम और मौत दोनों को मैंने देखा
लेकिन सोचता रहा कि उनमें अन्तर है, यह जनम
मुश्किल था और तड़प थी हमारे लिए, मौत-सी, हमारी मौत-सी ।
लौट आए हम अपने महलों को, अपने-अपने राज में,
पर अब चैन नहीं था वहाँ, हमारी अपनी पनाह में,
पराए लोग अपने बुतों से चिपटे हुए.
ख़ुशी होगी मुझे गर फिर एक मौत आए ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य