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माटी अर मिनख / नीरज दइया

माटी मिनख नै
चाइजै कित्ती’क?
स्सौ कीं हुवतां थकां ई
माटी सारू लड़ै है
माटी रा मिनख।

भटकावै है मन
जोड़ै है जुगत
माटी री माटी सूं!

माटी री बणत सूं
मन नै भटकावण मांय
बेजा ई सौरप है।

एकर चींत
मीत!
इण माटी री सौरप नै
सोच,
कै आ कांई चावै
जिण सूं घड़ीज्या हा-
थूं अर म्हैं।