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माटी रौ हेलौ / रेंवतदान चारण

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पग-पग माटी लौई मांग, सूखी हाळी बीज रे;
तीखा हळ लै हालौ करसां, आई आखातीज रे;
माटी रौ हेलौ सांभळौ!
धरती रो हेलौ सांभळौ!

बांगो है ज्यूं आभौ देखै, विलखै आंख्यां फाड़ै;
बोळौ बगनो हुयग्यौ कीकर, धरती हेलौ पाडै;
सरवौ व्है तो कांन लगा सुण, माटी थनै बुलावै है;
नैण हुवै तो देख रूंखड़ा, धरती हाथ हिलावै है;
तन माटी रौ सोच न कीजै, बैठ घड़ै विधाता;
रेत मुलक री घणी अमोलक, सुण रे जग रा अंदाता;
माटी साटै मरणौ पड़सी, खांधै खांपण बांधलौ;
माटी रौ हेलौ सांभळौ!
धरती रो हेलौ सांभळौ!

जद थूं जाणै वाली माटी; चीण काळजौ सूंपै;
प्राण सजीवण करै मिनख रा, झुक झुक पगलया चूंपै;
कण बीज्यां मण निपजै इण में, बेलां लाख मतीरा;
अेक पूंख अलेखां दांणां, लाखां गुण माटी रा;
जे थूं देवै कंवळा टाबर, धरती फूल हंसावै है;
जे थूं तन री छाया करदै, माटी रूंख लगावै है;
जे थूं इण में सींचै पाणी, धरती सींचै काया;
जे थूं देवे खात धरा नै माटी अणगिण माया;
चढ़ियौ फरज चुकावण सारू, दूध पियै री आंण लौ;
माटी रौ हेलौ सांभळौ!
धरती रो हेलौ सांभळौ!

ला जड़ामूल सूं इंकलाब, पाताळ फोड़ परळै करदै!
करसौ मजदूर बणै करता, धर रो इतिहास नवौ लिखदै;
रे अेक सीस रै बदळै धरती, जुग जुग सीस उगावैला;
मरण अकारथ कदै न जावै, माटी मोल चुकावैला;
जे हाथ कट्यौ धड़ नीचै पड़गी, धरती धजा उठावैला;
माटी थारौ लोई लेनै, मेंहदी हाथ रचावैला;
सौगन है काचा पूंखां री, मरणै नै मंगळ मांनलौ;
सौगन चंवरी रै फेरां रीं, मरणै नै मंगळ मांनलौ;
सौगन सांवण रै हींडां री, मरणै नै मंगळ मांनलौ;
माटी रौ हेलौ सांभळौ!
धरती रो हेलौ सांभळौ!