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माठि खे माठि लॻी वेई आ! / अर्जुन हासिद

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माठि खे माठि लॻी वेई आ!
ॻोठ में ॻाल्हि हुली वेई आ!

आबरू घ्ज्ञर जी सॼी ओरांघे,
दर ऐं दीवार भञी वेई आ!

कहर केॾो न मचाए थी छॾे,
ॻाल्हि नंढिड़ी, जा ॿुधी वेई आ!

साहु मुठि में थो लॻे माण्हुनि जो,
ॼणु त धरती का धुॾी वेई आ!

रोज़ केॾियूं न पचारूं आहिनि,
केॾी छिकताण मची वेई आ!

फ़ैसला कहिड़ा सुभाणे थींदा,
अॼु त पैंचात उथी वेई आ!

शोर गुल छा ते कयो थई हासिद,
सिर्फ़ साञह ई हली वेई आ!