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मातम से बचा / समीर बरन नन्दी

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निकल आए हैं --
केंचुआ, घोंघा, बेग-मेंढक
कमरे के कोने में भरा पड़ा बीटल
झींगुर, दीवार पर छिपकली ।

रेंग रहे हैं चारो ओर
पाँवहीन पंखहीन
जंतु-अजंतु ।

उन्ही में न रहते हुए
दरवाज़े के बाहर-भीतर
हो रहा हूँ --

चारों ओर उदारीकरण के मातम से बचा हुआ हूँ ।