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माथे पे बिंदिया चमक रही / भावना कुँअर

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रचनाकार: भावना कुँअर

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माथे पे बिंदिया चमक रही

हाथों में मेंहदी महक रही।


शर्माते से इन गालों पर

सूरज सी लाली दमक रही।


खन-खन से करते कॅगन की

आवाज़ मधुर सी चहक रही।


है नये सफर की तैयारी

पैरों में पायल छनक रही।


Categories: कविताएँ | भावना कुँअर