Last modified on 3 जून 2009, at 18:24

माथे महावर पाँय को देखि महावर पाय सुढार ढुरीये / देव

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:24, 3 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देव }} <poem> माथे महावर पाँय को देखि महावर पाय सुढार...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

माथे महावर पाँय को देखि महावर पाय सुढार ढुरीये ।
ओँठन पै ठन वै अँखियाँ पिय के हिय पैठन पीक धुरीये ।
सँग ही सँग बसौ उनके अँग अँगन देव तिहोर लुरीये ।
साथ मे राखिये नाथ उन्हेँ हम हाथ मे चाहतीँ चार चुरीये ।


देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।