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माधवी / रंजना जायसवाल

सुनो माधवी,
क्यों स्वीकारा तुमने
पिता के यज्ञ की आहुति बनना
श्यामकर्णी घोड़ों के बदले
परोसी गयी तुम्हारी देह
कई-कई राजाओं के सामने
सनतानें भी ले ली गयीं
ब्याज के बदले
कितना रोयी छटपटाई होगी तुम
बिना प्रणय समर्पण के समय
तुम्हारी ममता ने भी तो
धुना होगा सिर
बच्चों को देते समय
तुम्हारा स्त्रीत्व और मातृत्व
क्यों इतना असहाय था
शासन के सामने
माधवी, तुमने क्यों मानी ऐसे पिता की बात
जिसने तुम्हें बेच दिया
कैसे थे ऋषि
जिन्होंने सौा किया स्त्री-देह का
देह को रेहन रखना कहाँ का धर्म था?
क्यों नहीं विरोध कर पायी तुम
इस अन्याय का?
पिता का कर्ज चुकाकर तुमने ले लिया
वानप्रस्थ जवानी में ही
गृहस्थ अब कहाँ उपयुक्त था तुम्हारे लिए!
कइयों की भोग्या बनी स्त्री को
पत्नीत्व का सम्मान देता भी कौन?
तुमने ऐसा क्यों किया माधवी अपने साथ
क्या इतना जरूरी लगा
अच्छी पुत्री कहाना
कि तुम मनुष्य से मादा बना दी गयी
सिर्फ और सिर्फ मादा।