http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80_/_%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%80&feed=atom&action=historyमाधुरी / दामिनी - अवतरण इतिहास2024-03-29T01:33:12Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80_/_%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%80&diff=189339&oldid=prevSharda suman: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दामिनी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2015-03-02T09:56:27Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दामिनी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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वो अपने भारी नितंबों को <br />
बड़े ही मादक ढंग से हिलाती है,<br />
इसीलिए इस गली में<br />
‘माधुरी’ के नाम से जानी जाती है। <br />
वैसे ये नाम भी <br />
उसके शुरुआती एक ग्राहक ने ही सुझाया था,<br />
जो उसका ‘सावित्री’ नाम जान <br />
देर तक खिलखिलाया था,<br />
पहले उसे इस काम की <br />
कलाएं नहीं आती थीं,<br />
सो दिन-भर में बस <br />
एक-आध ही निबटा पाती थी,<br />
अब तो एक बार जो <br />
उसके कोठे से हो के जाता है,<br />
वो करवाचौथ की रात को भी <br />
यहीं भाग आता है। <br />
जी हां, रात ही नहीं दिन में भी <br />
धड़ल्ले से चलती है उसकी दुकान,<br />
दिन में घर से बाहर रहना <br />
होता है वैसे भी आसान<br />
अक्सर जो घर में मक्खी देख के <br />
गुस्से से बीवी पे भिनभिनाता है,<br />
वो भी इन बजबजाती गलियों में <br />
बेखटके गुनगुनाता चला आता है,<br />
माधुरी जानती है, <br />
कैसे कम वक्त में<br />
ज्यादा-से-ज्यादा ग्राहक निबटाए<br />
साथ ही पूरी संतुष्टि दे <br />
उसे टिकाऊ भी बनाए,<br />
वो अक्सर ये कह के इतराती है,<br />
कि उसी की बदौलत,<br />
कई घरों की मां-बहन बच जाती हैं,<br />
पर वो आज ये सोच के है घबराई,<br />
रात के ग्राहक के अपने स्तनों पर दिए <br />
दंतचिन्ह को कैसे छिपाएगी,<br />
आज जब उन्हीं से,<br />
अपने बच्चे को दूध पिलाएगी?<br />
</poem></div>Sharda suman