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मानखो तो मून प्रीत’ई गूंगी है / राजूराम बिजारणियां

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मानखो तो मून प्रीत’ई गूंगी है
सामीं छाती घाव पीड डूंगी है
लीर-लीर हुई जावै आंख फाड देख
दादू री दोवटी रहीम री लूंगी है
छोड बाम्बी ठाटसूं सांप घूमै हाट में
गतागूम जोगीजी वस हुई पूंगी है
बात तो है सांच सांच नै आंच कठै
मौत साव सस्ती जिंदगाणी मूंघी है