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मानव विकास / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र

स्वयं सृजित प्रतिस्पर्धा के साथ संघर्षरत
कपोल-कल्पित संभावनाओं की राह पर
स्वार्थ के बोझ तले दबा
औपचारिक संबंधों का झूठा प्रदर्शन

समृद्धि का ढोंग
झूठे ज्ञान और आत्म-प्रशंसा का आडम्बर
मात्र अहंकार का पोषण होता है जिससे
बेचारा हो गया है आज का मानव

भूल गया है वह
स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के मानकों को
समाज के लिए नैतिक कर्तव्य
संभावनाओं की असलियत
सार्वजनिक व्यवहार के मानदंड।

आचरण की पवित्रता
रिश्तों की अनिवार्यता
प्रियजनों के साथ आत्मिक सम्बन्ध
श्रेष्ठ लोगों का सम्मान करना
जन कल्याण हेतु जीवन त्याग
बौद्धिक वार्ता सब के सब मूर्खता के
एक उदाहरण बन गये हैं।

यदि, यह विकास है!
तो मेरे प्रभु! मैं इस तरह की सफलता
और विकास मुझे नहीं चाहिए।
जो मुझे मेरी संस्कृति एवम् सभ्यता से वंचित कर दे।
धर्म परायणता, सदव्यवहार, समाज, प्रेम और करुणा।
को तिलांजलि देकर
नव-जागरण स्वीकार्य नहीं है,
मेरे ईश्वर, मानव होने के लिए मेरी मदद करना
सवेदना-शून्य यंत्र के लिए नहीं।