मानस का स्वाध्याय रही माँ,
श्रद्धा का पर्याय रही माँ।
संध्या तुलसी पे सँझवाती,
प्रातः नमः शिवाय रही माँ।
विघ्नों को प्रशमित करने के,
सौ-सौ सिद्ध उपाय रही माँ।
आशीषों, मंगल-वचनों का
सम्मूर्तित समुदाय रही माँ
पैबन्दों में भी मुसकाती,
गरिमा का अध्याय रही माँ
पुष्ट रहे घर भर, चिन्ता में,
आजीवन कृशकाय रही माँ।