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मानस का स्वाध्याय रही माँ / शिव ओम अम्बर

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मानस का स्वाध्याय रही माँ,
श्रद्धा का पर्याय रही माँ।

संध्या तुलसी पे सँझवाती,
प्रातः नमः शिवाय रही माँ।

विघ्नों को प्रशमित करने के,
सौ-सौ सिद्ध उपाय रही माँ।

आशीषों, मंगल-वचनों का
सम्मूर्तित समुदाय रही माँ

पैबन्दों में भी मुसकाती,
गरिमा का अध्याय रही माँ

पुष्ट रहे घर भर, चिन्ता में,
आजीवन कृशकाय रही माँ।