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मान्स सबई बेघर हो जें तौ / महेश कटारे सुगम

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मान्स सबई बेघर हो जें तौ
गाँव-गाँव ऊजर हो जें तौ

सोचौ तौ जब भेंस बराबर
करिया सब अक्षर हो जें तौ

का हुइयै जब भले आदमी
सत्ता सें बाहर हो जें तौ

सबरौ खून बेई पी जें हैं
नेता सब मच्छर हो जें तौ

का हुइयै नैनू के लोंदा
जब सबरे गोबर हो जें तौ

चोर उचक्कन बदमाशन खौं
कुर्सी के आदर हो जें तौ

जीवौ तौ दूभर हो जैहै
बाहर ठांड़े डर हो जें तौ

गोला बन्दूकन के अड्डा
मस्जिद सब मन्दर हो जें तौ