भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिटाई होसी तिरस / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:31, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित कागद |संग्रह=आंख भर चितराम (मूल) / ओम प…)
इन्नै-बिन्नै
खिंड्योड़ी
ठीकरियां अणथाग
बडा-बडा माट
ढकण्यां
परसहीण नीं है।
माटी
ओसण-पकाई हो सी
दो-दो हाथां।
जळ भर
ढक्या होसी माट
हर घर में
किणी हाथां
सकोरो भर जळ सूं
मिटाई हो सी तिरस
आपरी अर बटाउ री
काळीबंगां रो थेड़
आज भी सांवट्यां है ओळ्यूं
छाती माथै लियां
अखूट ठीकरियां।