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मिटे संस्कार / कृष्णा वर्मा


1
भाई से भाई
ना रिश्ता कोई स्थायी
नफ़रत की
माचिस लिये हाथ
स्वयं लगाई आग।
2
मिटे संस्कार
मरा आपसी प्यार
निज आँगन
करके तक़सीम
करें द्वेष व्यापार।
3
कहते हवा
बदली ज़माने की
किसके माथे
मढ़ेगा कोई दोष
बैठे सब ख़ामोश।
4
आपा-धापी में
हड़बड़ाई फिरें
ज़िंदगानियाँ
भूले हैं अपनापा
मन में दु:ख व्यापा।
5
वक़्त निकाल
कर लो स्वजनों से
दो मीठी बात
रहेगा मलाल जो
टँग गए दीवाल।
6
जंगल -बस्ती
घेरे हैं उलझनें
बाँटो दिलासा
मर न जाए कोई
कहीं यूँ बेबसी से।
7
शाह -नवाब
तख़्त रहे न ताज
दंभ क्यों सींचे
आज माटी ऊपर
औ कल होंगे नीचे।
8
रखा संदेह
रूठे रहे हमसे
रूह छूटेगी
क़फ़न उठाकर
रो-रो करोगे बातें।
9
रिश्ते में मोच
मलाल की खोह में
जा बैठे सोच
अमावसी रातें हों
उदासियों के डेरे।
10
रहनुमाई
सौंपी जिन्हें हमने
जले हैं घर
उन्हीं की साजिशों से
कैसे थे मनसूबे!