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मिट्टी छोड़ चरण तू मेरे / गुलाब खंडेलवाल

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मिट्टी छोड़ चरण तू मेरे
मैं विमुक्त, क्यों मुझको तेरा जड़ आलिंगन घेरे!
 
निशि-दिन का यह चक्र निरर्थक संध्या और सवेरे
मैं तो देश-काल से ऊपर, फिरूँ न इनके फेरे
कंचन-किंचन हारे, बस कर काम-कीर्ति-शर तेरे
लक्ष्य दूर चल पड़ा बटोही उठकर बड़े अँधेरे
 
मिट्टी छोड़ चरण तू मेरे
मैं विमुक्त, क्यों मुझको तेरा जड़ आलिंगन घेरे!