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मिथिलाक नारी लेल / किसलय कृष्ण

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कहिया धरि बहाबी ई नोर विधाता हमर वाम छै।
कखन उगतै भोरूकवा इजोर, अन्हारे नगर गाम छै।

कोन गलती केलहुँ, एहि समाजे सँ हम
अपन जिनगी जरेलहुँ, लोक लाजे सँ हम
सभ कहैए हमर छै जे करमे फूटल
मुदा सोचू धिया केर छै सपने टूटल

हँसी लऽ कऽ भगलै जे चोर उदासी हमर नाम छै।
कखन उगतै भोरूकवा इजोर, अन्हारे नगर गाम छै।

सदिखन हम इन्होरे मे, रान्हल गेलहुँ
फेर दहेज खुट्टी सँ, बान्हल गेलहुँ
कोन सपना लऽ कऽ सजेलियै सिनूर
मुदा मुस्कान रहलै अकासो सँ दूर

निन्न में छै सभ सूतल विभोर कतहु नइं हमर ठाम छै।
कखन उगतै भोरूकवा इजोर, अन्हारे नगर गाम छै।

छी सीताक संतति आ हम छी भारती
छनि स्वर्गहु में उतरैत जिनक आरती...
चलू फेरो ओहि महिमा केँ मण्डित करी...
सभटा फूसियाही बन्हन केँ खण्डित करी...

झूमि नचतै फेर मनमा केर मोर, मिथिला हमर धाम छै।
फेर।उगतै भोरूकबा इजोर पहिने सीया तखन राम छै।