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मिनखपणो / विनोद कुमार यादव

कदै ई
लोग जींवता
आन-बान-स्यान सारू
अब चावै
ऑनर किलिंग
जिण सूं बचै
मन रो मान।

कदै ई मानता
देही अर जीव
देन है परमेसर री
अब कानून बतावै
देही अर जीव रो मालक
माणस खुद है
जीवै तो जीवै
नीं जीवै तो
नीं जीवै !

कदैई मानता
जोड़ा बणावै परमेसर
मायत तो बिचोलिया है
अब कोनीं फोड़ो
खुद बणावै
जोड़ा जोड़ो !

सोचूं
अब कांई काम री
बै किताबां
जकी रचीजी
मिनखपणो रचणसारू !