Last modified on 23 जुलाई 2018, at 15:36

मिनख बधतो जारियो है / लक्ष्मीनारायण रंगा

मिनख बधतो जारियो है
मानखो घटतो जारियो है

जित्तौ ऊंचौ चढ़ै रूंख ओ
जड़ां छोडतो जारियो है

जित्ती तेज हुवै रोसण्यां
अन्धारो पसरतो जारियो है

सड़कां रै जंजळा बिचाळै
नगर उळझतो जारियो है

पै‘रै मिनख घणीं पौसाकां
नागो हुवतो जारियो है

इण अन्ध्यारै सहर मांय
सुरज भटकतो जारियो है

ऊंचा सुंरां में गावे गीत
ओ रोवणों लुकारियो है

होठां सूं साथै रिस्ता
मन सूं टूटतो जारियो है

पसरै काई पड़तां पड़तां
सरोवर सड़तो जारियो है

फैलै चौफेर टीडी-फाको
ओ खेत खजतो जारियो है

सुतन्तरता री दुकान सूं
नुई सांकळा घड़वा रियो है

हथियारां री बिकरी खातर
दैसां नै लड़वा रियो है