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जब नाव लेके निकले, तूफ़ान का डर कैसा! | जब नाव लेके निकले, तूफ़ान का डर कैसा! | ||
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हम जिनके लिये जूझे लहरों से, नहीं वे ही | हम जिनके लिये जूझे लहरों से, नहीं वे ही |
05:40, 4 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
मिलना न अब हमारा हो भी अगर तो क्या है!
यह प्यार बेसहारा हो भी अगर तो क्या है!
जब नाव लेके निकले, तूफ़ान का डर कैसा!
कुछ और तेज़ धारा हो भी अगर तो क्या है!
हम जिनके लिये जूझे लहरों से, नहीं वे ही
नज़रों में अब किनारा हो भी अगर तो क्या है!
बेआस चलते-चलते, राही तो थकके सोया
मंज़िल का अब इशारा हो भी अगर तो क्या है!
दिल में तो हमेशा तू रहता है, गुलाब! उसके
घर छोड़के आवारा हो भी अगर तो क्या है!