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मिलन प्रतीक्षा की मौत भर है / अनामिका अनु

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मैंने कितनी दुआओं के झुरमुटों के बीच
तुम्हें हरे जतन से छिपा रखा था
पर तुम क्यों बहा आते हो
उन नदियों में उम्मीद के दीये
जो मनोकामना पूर्ण करती हैं,
 
क्यों छोड़ आते हो तुम
हर दरगाह पर मिलन के तारीख़ की गुजारिशें
मुझे पसन्द है तुम्हारी बातों की गहराई
और
तुम्हारी रवादार आवाज़ का वह अक्खड़पन

सुनो ! तुमको सुनकर
मैंने एक सुन्दर झील गढ़ी है
क्यों तुम मिलकर बाढ़ होना चाहते हो
क्यों तोड़ना चाहते हो उस सँयम के बाँध को
जो जोड़ता है दो किनारों को
  
मिलन की बाढ़
टूटता बाँध और खुलती मुट्ठी,
सब पानी
मैं आकण्ठ डूबकर बह रही हूँ !
जीवन तट पर मिलेगी
मेरी प्रेमपूर्ण प्रतीक्षा की लाश
जिसे मिलन वाला कौवा नोंच-नोंच खाएगा
  
“मिलन प्रतीक्षा की मौत भर है ।”