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मलरिहा के छत्तीसगढ़ी **कुण्डलिया**
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नोनी बाबू एक हे, झिन कर संगी भेद !
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कहाँले  बहूँ  लानबो, परगे  हवय  अकाल  ।
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बेटा बेटा सब गुनय,  इही  जगत  के हाल  ।।
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गुनले  अपन  बिचार,  बेटी  रोटी  खवाथे  ।।
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नोनी  बहनी  नोहय ग,  ए जिनगी के बोझ  ।
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टूरा  होथे  मनचला,  कोनो  रहिथे  सोझ  ।।
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काम  बुता  ढेचराय , मुड़ी  धरके  रोवाथे  ।।
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कब समझबे मनूस, भविस्य हमर हे नोनी  ।।
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मिलन मलरिहा
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मल्हार बिलासपुर
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* [[इही जिनगानी रे / मिलन मलरिहा]]
 
* [[इही जिनगानी रे / मिलन मलरिहा]]

17:27, 13 मई 2017 का अवतरण

मिलन मलरिहा
Milan-Malariha-Kavitakosh.jpg
जन्म
निधन
उपनाम मलरिहा
जन्म स्थान मल्हार, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
कुछ प्रमुख कृतियाँ
विविध
जीवन परिचय
मिलन मलरिहा / परिचय
कविता कोश पता
www.kavitakosh.org/{{{shorturl}}}

छतीसगढ़ी रचनाएँ

मलरिहा के छत्तीसगढ़ी **कुण्डलिया** """""""""""""""""""""""""""""""""""""" - नोनी बाबू एक हे, झिन कर संगी भेद ! रुढ़ीवादी बिचार ला, लउहा तैहा खेद !! लउहा तैहा खेद, समाज म सुधार आही! पढ़ही बेटी एक, दूइ घर सिक्छा लाही !! मान मिलनके गोठ, भ्रुणहत्या कर काबू ! भेज दुनो ल एकसंग, इसकुल नोनी बाबू!! - पुस्तक डरेस लानदे, बिसादे अउ सिलेट ! बरतन चउका झिनकरा, पढ़ाई ल झिन मेट !! पढ़ाई ल झिन मेट, सिक्छा के अधिकार दे! बेटी बने पढ़ाव, अउ चरित सन्सकार दे !! आही सिक्छा काम, दुख-दरद देही दस्तक ! मनुस छोड़थे संग, फेर नइछोड़य पुस्तक !! - बेटी पढ़के बाँटही, गांव गांव म गियान ! परकेधन झिन मान रे, इही देस के जान !! इही देस के जान, पढ़लिख नवाजुग लाही ! रुकही अतियाचार, कुकरमी दूर हटाही !! मलरिहा कहत रोज, पुस्तक धरादे बेटी ! अबतो जाग समाज, सिक्छित बनादे बेटी !! - कहाँले बहूँ लानबो, परगे हवय अकाल । बेटा बेटा सब गुनय, इही जगत के हाल ।। इही जगत के हाल, कोख भितरी मरवाथे । गुनले अपन बिचार, बेटी रोटी खवाथे ।। कहत मलरिहा गोठ , खुदके माथा घुसाले । छोड़ देहि सनसार, दाई पाबे कहाँले ।। - नोनी बहनी नोहय ग, ए जिनगी के बोझ । टूरा होथे मनचला, कोनो रहिथे सोझ ।। कोनो रहिथे सोझ, दाई - ददा ल सताथे । काम बुता ढेचराय , मुड़ी धरके रोवाथे ।। मलरिहा कहत गोठ, कानले निकाल पोनी । कब समझबे मनूस, भविस्य हमर हे नोनी ।।

मिलन मलरिहा मल्हार बिलासपुर

गीत

छंद

कविता

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