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मिली नज़र से यूँ मिली उठी नज़र न हट सकी / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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मिली नज़र से यूँ मिली उठी नज़र न हट सकी
क्या नूर था जमाल था लबों पे मेरे आह थी
अदा पे उसकी मर मिटा ये दिल को मेरे क्या हुआ
खुदा कि कायनात में कली से जब वो गुल बनी
बयाँ करूँ क्या हाल-ए-दिल सदा रही यूँ कशमकश
न दर्द का पता चला न दर्द की दवा मिली
वो हादसा भी यूँ हुआ कि कुछ पलों के वास्ते
मैं सांस तक न ले सका अजीब थी हवा चली
पुकारती बहार है तुझे पता क्या बे खबर
जिए तो मर के क्या जिए मिलेगी फिर क्या जिंदगी