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मि‍लन के इंतज़ार में / रश्मि शर्मा


बहुत बड़ा है हमारा देश
और हमारे शहर के दरमि‍यॉं

दूरी भी है हज़ारों मील लंबी
मगर आना चाहो तो
आ सकते हो
तुम मुझसे मि‍लने
दो पल, दो घंटे
या दो दि‍न के लि‍ए

मैं चाहती हूँ देखना

तुम्‍हें हँसते, गुनगुनाते
मेरी ऑंखों में ऑंखें डाल
बति‍याते
यकीन मानो

मुलाकात ज़रूरी है
कि‍ मि‍लना
वक्‍त का ठहर जाना
और एक पल को
हज़़ार दफ़ा जीना होता है

अक्‍सर
मेरी इच्‍छा होती है
कि‍ जब मैं सॉंझ को

कि‍सी काम से
दूर पैदल चलती जाऊँ
कहीं पास से चलकर
तुम मेरे पास आओ
दो मुझे
एक छोटी मुस्‍कान
और अपने वजूद की खुश्‍ाबू
मुझे सौंप चले जाओ

मैंने देखा है अक्‍सर
बस की टि‍कट खि‍ड़की में
कतार पर लगे
और रेलवे प्‍लेटफार्म पर
मेरे इंतज़़ार में बैठे तुम्‍हें
इस असमंजस को
चेहरे पर चि‍पकाए
कि‍ मि‍‍‍‍‍‍‍लूँ या न मि‍‍‍‍‍‍‍लूँ

इस बार
तुम बेधड़क चले आओ
इस पार जो है
उसे बस तुम्‍हारा ही इंतज़़ार है
कि‍सी से एक बार मि‍लकर
ख़त्‍म नहीं होता कुछ
एक मुलाकात
ज़िंदा रहती है तमाम उम्र
फि‍र मि‍लन के इंतज़़ार में।