भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मीठा सपना / बालकृष्ण गर्ग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चंदा-सूरज केक हमारे,
चाकलेट बन गए सितारे!
बादल थे शक्कमर के गोले,
बरसे नभ से मीठे ओले!

आइसक्रीम बन गए पर्वत,
सागर-नदियों में था शर्बत!
तालाबों में दिखे न कोई,
तैर रही थी मधुर मलाई!

तरह-तरह के टाफी बिस्कुट,
लटके थे पेड़ों पर छुटपुट!
ज्यों ही हाथ बढ़ाया अपना,
टूट गया झट मीठा सपना!