हिन्दी के बड़े शायर रघुवीर सहाय के इन्तिक़ाल की ख़बर सुनकर
मीठी है इस क़दर उसे कैसे चुभन कहें I
मुजरिम बनें जो ख़ार को जाने-चमन कहें II
सकता-सा छा गया है एक उस फ़र्द के बग़ैर,
जी चाहता है आज उसे अंजुमन कहें I
कोई परेशांहाल है कोई हवासगुम,
इसको जुनूं कहें कि जहां का चलन कहें I
साक़ीगरी के फ़ैज़ से महफ़िल थी रंग पर,
हम क्यूँ न ज़र्बे-मौत को पैमांशिकन कहें I
शहरग में हो लहू तो करें हम मुसव्विरी,
शायर बनें तो सोज़ तेरा बाँकपन कहें II