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मीत मेरे / संतोष कुमार सिंह

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मीत मेरे, गीत तेरे, प्रीति में गाती रहूँगी।
सागर-सी गहरी प्रीति तेरी,मीत मैं पाती रहूँगी।।

बन के लता मन से लिपटती जाउँगी,
बाँहों में तेरे मैं सिमटती जाउँगी,
जीवन विलोते जाइये, नवनीत मैं पाती रहूँगी।
मीत मेरे, गीत तेरे, प्रीति में गाती रहूँगी।।

पंसुरी बनके चरण सँग घूम लूँगी,
बंसुरी बनके अधर को चूम लूँगी,
मन छेड़ते ही जाइये, संगीत मैं पाती रहूँगी।
मीत मेरे, गीत तेरे, प्रीति में गाती रहूँगी।।

छाँव में अलकें सुखाती मैं मिलूँगी,
राह में पलकें बिछाती मैं मिलूँगी,
आप दिल बसते रहें तो, जीत मैं पाती रहूँगी।
मीत मेरे, गीत तेरे, प्रीति में गाती रहूँगी।।