Last modified on 30 दिसम्बर 2012, at 03:30

मुँह न मिलें / लीलाधर जगूड़ी

एक सुरंग पूरब से
दूसरी पच्छिम से
एक जन्म की ओर से
दूसरी मृत्यु की ओर से आ रही है
दोनों सुरंगों के जब तक मुँह न मिल जाएँ
तभी तक सुरक्षा है

मैं इंजिनियरिंग नहीं जानता शब्द-भेदन जानता हूँ
चाहता हूँ जन्म से मृत्यु की ओर आने वाली
सुरंग का लेबल गड़बड़ा जाए

दोनों अगर मिल गए बारूदी सुरंगों की तरह
इंजिनियरिंग भले ही सफल हो जाए
जीवन विफल और विरूप हो जाएगा ।