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मुंशीजी / विनोद सारस्वत

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च्यार बिलांत रा मुंशीजी, डीगा-डीगा पग धरै।
छव फुट री घर धिराणी, रोज मसखरी करै।।

दो मुठी काया सगळी तारा तोड़ण री बात करै।
डीगी-डीगी गपां सागै,माडणी बेसवार फिरै।।

खा-खा माल मोफत रो, पाणी बिना चळु करै।
ओड आवै खंधेड़ा हेटै, तो अे भी की हुंकार भरै।।

कर-कर काळा कागद्,धन माया घण भेळी करी।
राज रै खजानै में रैयौ सीर, साख सरबाळै सरी।।

पईसा यांरो माई-बाप पईसो ही दीन-ईमान है।
रूपियां री ताकड़ी में तोलै, ओ ही घण गुमान है।।

उमर मुसाण पूगै जिŸाी, पण हाल घोडे असवार है।
पुरस्कार बगी पाळा टुरज्या वै अेकला ही मिसाल है।।

बै हरैक री काण-कासर काढ़ण, दिन-रात ताता रैवे।
खुद नैं समझै टणकासिंघ दूजा नैं बिसरांवता रैवै।।

धन-माया में गैला हुय, राम नांव कदैई लियो कोनी।
जमराज लेवैला म्यांनौ, जठै कूड़ी गप्पां चालैला कोनी।।