http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B0_/_%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4_%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80&feed=atom&action=historyमुकम्मल शेर / अमित गोस्वामी - अवतरण इतिहास2024-03-29T09:23:42Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B0_/_%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4_%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80&diff=287748&oldid=prevसशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमित गोस्वामी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2021-02-10T19:01:10Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमित गोस्वामी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
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<poem><br />
बमुश्किल मिलने वाले <br />
क़ुर्ब के लम्हों को <br />
यकजा जोड़ कर जो थी सजाई <br />
उस पिघलती शाम <br />
मद्धम रोशनी में <br />
रेस्त्राँ की मेज़ पर <br />
जब चाँद मेरे साथ बैठा था <br />
मसाला चाय की चुस्की पे <br />
उसके जुड़वाँ लब इक दूसरे से मिल रहे थे <br />
तब हमारे हिज्र की मजबूरियाँ मिसरों में लिपटा कर <br />
उसे इक शेर मैंने यूँ सुनाया था <br />
<br />
तुम्हारे नाम से वाबस्ता है ‘दूरी’ कुछ इस हद तक<br />
तुम्हारा नाम लूँ तो लब भी आपस में नहीं मिलते<br />
<br />
मेरा ये शेर सुनकर उसने थोड़ी देर सोचा<br />
और फिर धीरे से अपना नाम होठों पर सजाकर<br />
उसने मेरे शेर की तसदीक़ कर दी<br />
और मेरा लिखना मुकम्मल हो गया था <br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५