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मुक़दमा / ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त / विनोद दास

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वादी अपनी लम्बी तक़रीर के दौरान
अपनी पीली तर्जनी दिखा दिखाकर मुझे बारहा घायल करता रहा
मुझे डर है कि शायद ही मेरा आत्मविश्वास डगमगाया नहीं होगा
बेइरादतन मैंने वहशत और कमीनगी का मुखौटा पहन लिया था
जाल में फँसे एक चूहे की तरह
भेदिया की तरह, हत्यारे भाई की तरह
रिपोर्टर जंग नाच की धुन पर नाच रहे थे
मैग्नीशिया की तरह
मैं तिल-तिल जलने की सज़ा भुगत रहा था

यह सब कार्रवाई एक छोटे से दमघोंटू कमरे में हुई थी
फर्श चरमरा रहा था
छत से प्लास्टर झर कर गिर रहा था
तख़्तों के सूराख़ों में झूलते फन्दों से
मैंने दीवारों पर लगे चेहरों की गिनती की
दीवारों पर लगे चेहरे लगभग एक जैसे थे
सिपाहियों और अदालत ने हाज़रीन की गवाही ली
वे उस सियासी दल से थे जिनके पास ज़रा भी रहम नहीं था
यहाँ तक कि मेरा वक़ील भी बाख़ुशी मुस्कान बिखेर रहा था
वह गोली चलानेवाली टुकड़ी का मानद-सदस्य था

पहली क़तार में मेरी माँ की तरह कपड़े-लत्ते पहने
एक थुलथुल बूढ़ी औरत बैठी हुई थी
जो बारहा नाटकीय अन्दाज़ में
अपना रूमाल उठाकर अपनी मैली आँखों के पास ले जाती थी
गो कि वह रो नहीं रही थी
यह सिलसिला काफ़ी देर तक मुश्तकिल चला होगा
लेकिन मुझे यह तक नहीं पता कि कितनी देर यह नाटक चला
न्यायमूर्तियों के गाऊनों में सूरज ढलने की ख़ूनी सुर्ख़ी उभर रही थी

हकीक़तन यह मुकदमा हमारी काल कोठरी में चल रहा था
फैसला पहले से ही उन्हें पक्का पता था
कुछ देर बग़ावत करने के बाद एक-एक करके
उन्होंने हार कबूल ली थी
मैंने ताज़्ज़ुब से अपनी मोम-सी अँगुलियों को देखा
मैंने अपना आख़िरी लफ्ज़ नहीं बोला था
जबकि सालों से अपनी तक़रीर मैं तैयार कर रहा था
ईश्वर के लिए,दुनियावी कचहरी के लिए और अपने ज़मीर के लिए
ज़िन्दा आदमियों की तुलना में मुर्दों के लिए

मुझे सन्तरियों ने पैरों पर खड़ा किया
बामुश्किल मैं पलक झपका पाया था
कि तभी कमरे में एक ज़ोरदार क़हक़हा लगा
छूत के मरीज़ की तरह मेरी माँ की हंसी भी फूट पड़ी
इस दरम्यान हथौड़ी बजी और आख़िरकार
सब हकीक़त की दुनिया में लौट आए

लेकिन फिर क्या हुआ
गले में फांसी के फन्दे से मौत
या शायद क़ैद में ज़ँजीरों से बाँधकर रखने की मुरौव्व्ती सज़ा
क़िब्ला मुझे डर है कि कोई तीसरी बुरी सज़ा तज्बीज़ी न गई हो
जो वक्त, समझ और सोच से परे हो

लिहाज़ा जब मैं जगा
मैंने अपनी आँखें नहीं खोली
अपनी अँगुलियाँ कसीं,अपना सिर तक ऊपर नहीं उठाया
हल्की-हल्की सांस ली
चूँकि मैं वाक़ई नहीं जानता हूँ
कि कितनी मिनट की हवा अब मेरे पास बची है ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास