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मुक्तावली / भाग - 6 / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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अहंकार - तन विपिनक मन कुन्ज मे भरि हुंकारी घाघ
दैवी गुण भक्षण करय अहंकार पशु बाघ।।51।।

रोग - काय कुलाय बसैछ कत रोग बिहंगम पाति
कतरि कुतरि धृति मति सकल फल दल दैछ निपाति।।52।।

अविवेक - अविवेकक पाषाण लिपि जीवन पत्र परेख
चित जलपर नहि थिर रहय लिखित छनहु किछु रेख।।53।।

भेदाभेद - धातु सुवर्णक एक पुनि भूषन कत शत वर्ण
कर्म एक ध्वनि-अधिकरण श्रवन अमित पद र्वा।।54।।
वर्ण पचीस पचास वा वाक्य अनन्त प्रमान
विषय वस्तु एकहि विविध भाषा भेद विधान।।55।।

एकत्व - सहस नाम भानुक यदपि, शत विध माटिक रूप
कनक क गुन उपयोग कत तत्त्वक एक स्वरूप।।56।।

योगी ओ मूढ़ - जिबितहुँ जडवत् जनिक थिति, जगितहुँ रहथि शयान
दुखहु सुखक मति, गति अघट योगी मूढ़ समान।।57।।

साधु - पुत्र जखन नहि पौत्र कत? बाबा भरि संसार
अपना केँ चीन्हथि तदपि साधु न ककर चिन्हार।।58।।

सावक - पूर्णकाम निष्काम पुनि कर्त्ता नित निष्कर्म
सत कहि असतक सत्यकेँ प्रगटथि साधक मर्म।।59।।

बोध - देखथि प्रकृतिक गुन क्रिया निज कर्तृत्व अबोध
बुझथि बुद्धि सँ जे परे तनिकहि वास्तव बोध।।60।।