http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%86%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8_/_%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3_%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B8&feed=atom&action=historyमुक्ति के आभास / हरिनारायण व्यास - अवतरण इतिहास2024-03-28T09:18:41Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%86%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8_/_%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3_%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B8&diff=155980&oldid=prevMani Gupta: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिनारायण व्यास |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <po...' के साथ नया पन्ना बनाया2013-07-07T13:04:15Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिनारायण व्यास |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <po...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
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<poem>क्षिति दिगंचल चूमता आकाश,<br />
दिशि-विदिशि की प्राण-धारा चेतना की मुरलिका से<br />
शून्य वन गुंजित, नया रव आज भव में भर चला।<br />
उठ रहे श्रावण घटा से प्रिय-मिलन क्षण<br />
जगमगाते हर निमिष में मुक्ति के आभास<br />
ज्योति अब लेने लगी है जागरण की साँस।<br />
एक-दो नक्षत्र रह-रह<br />
सो रहे अपनी व्यथा कह।<br />
घुल रहा तम<br />
दूर गुम-सुम प्राण तुम।<br />
अधजगी-सी भैरवी स्वर भर रही हो<br />
और भिनसारा पुलक कर बाँटता है प्यास।<br />
मुक्ति में जीवन नहा कर<br />
हर दिशा में फेंकता है<br />
नव-सृजन के फूल भर-भर।<br />
और टूटे कर बढ़ा कर झेलते खँडहर<br />
अजानी आस।<br />
बाल पाँखी तोड़ पिंजर<br />
खोजने निज जीर्ण कोटर<br />
वायुमण्डल चीरता उड़ जा रहा है ले नया विश्वास।<br />
सृष्टि के सौन्दर्य से सज्जित नया आकाश।</poem></div>Mani Gupta